Copyright © Online Poetry
Sunday, January 8, 2012

Neend ke tuutate hi, sapanon ki duniya, नींद के टूटते ही

नींद के टूटते ही......

नींद के टूटते ही | सपनों की दुनीया
कभी कभी क्यूँ लगता है
जैसे मैं जी रहा हूँ सपनों में
नींद के टूटते ही फिर से
चला जाऊंगा पुरानी दुनिया में
कुछ भी तो न था मायूसी के सिवा
जहाँ इस सपने के पहिले
लौट जाऊंगा फिर उसी वीराने में !



                      * उमाकांत शर्मा *

0 comments:

Post a Comment