Copyright © Online Poetry
Sunday, November 20, 2011

Mere Chaman ko na jaane nazar kis ki lagee

मेरे चमन को न जाने 
नज़र किस की लगी 
जहां गुल खिलते थे कभी 
आज वीराना है !
लाख दुश्मन थे, मगर
कोई नज़र उठा न सका 
मेरा तो दोस्त ही यारो 
बना वेगाना है !

                                      * उमाकांत शर्मा *
 

0 comments:

Post a Comment